3 दिसंबर 2013

अभिव्यक्ति-२०१३ नवगीत परिसंवाद का सफल आयोजन

लखनऊ में नवगीत को केन्द्र में रखकर दो दिवसीय कार्यक्रम २३ तथा २४ नवम्बर २०१३ को गोमती नगर के कालिन्दी विला में स्थित अभिव्यक्ति विश्वम के सभाकक्ष में सम्पन्न हुआ। नवगीत की पाठशाला के नाम से वेब पर नवगीत का अनोखे ढँग से प्रचार-प्रसार करने में प्रतिबद्ध अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की कई विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों से अलग करती हैं।
 
विघ्नविनाशक गणेश के समक्ष मंगलदीप जलाकर कलादीर्घा पत्रिका के सम्पादक एवं चित्रकार अवधेश मिश्र जी ने पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। पूर्णिमा वर्मन, विजेन्द्र विज, अमित कल्ला और रोहित रूसिया के द्वारा बनाये गये नवगीत पोस्टरों को दर्शकों के लिए विशेष रूप से लगाया गया था जिसे भरपूर सराहा गया। इस अवसर पर कार्यक्रम की संयोजक पूर्णिमा वर्मन ने विगत दो वर्ष से आयोजित किये जा रहे नवगीत परिसंवाद की संक्षिप्त रूपरेखा तथा नवगीत के लिये अभिव्यक्ति विश्वम की नवगीत विषयक भावी योजनाओं के विषय में जानकारी दी।
 
वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा माँ वागीश्वरी के समक्ष मंगलदीप जलाकर कार्यक्रम के पहले सत्र का शुभारंभ हुआ। सरस्वती वंदना लखनऊ के जाने माने कलाकार युगल रश्मि तथा पंकज चौधरी द्वारा की गई। प्रथम सत्र कार्यशाला का था जिसमें डा० भारतेन्दु मिश्र (दिल्ली) का वक्तव्य हुआ। उन्होंने गीत और नवगीत में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा- 'गीत वैयक्तिकता पर आधारित होता है, जबकि नवगीत समष्टिपरकता से जुड़ा होता है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि हर गीत नवगीत नहीं होता जबकि हर नवगीत में गीत के छंदानुशासन का निर्वाह करना होता है। देश और विदेश के नव रचनाकारों को नवगीत समझने व लिखने के लिये नवगीत की पाठशाला एक सहज मंच है। पाठशाला से जुड़े रचनाकारों- कृष्णनंदन मौर्य, वीनस केशरी, शशि पुरवार, ब्रजेश नीरज, सन्ध्या सिंह एवं श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’ ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं जिसपर वरिष्ठ सहित्यकारों ने अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियाँ देते हुए बताया कि किस नवगीत में कहाँ सुधार की आवश्यकता है।
 
दूसरे सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा नवगीत प्रस्तुत किये गये। मधुकर अष्ठाना (लखनऊ), डा० विनोद निगम (होशंगाबाद), डा० धनंजय सिंह (दिल्ली), दिनेश प्रभात (भोपाल), शशिकान्त गीते (खण्डवा) ने अपने-अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया। प्रत्येक कवि को रचना पाठ हेतु पच्चीस मिनट का समय दिया गया था।  जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया।
 
सभी नवगीतकारों द्वारा प्रस्तुत किये गये नवगीतों पर प्रश्न पूछे गये जिसमें सर्वश्री नचिकेता, मधुकर अष्ठाना, धनंजय सिंह, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक, भारतेन्दु मिश्र एवं डा० जगदीश व्योम ने नवगीत के कथ्य, शिल्प व लय से सम्बंधित अनेक प्रश्नों व उत्तरों के द्वारा नवोदित गीतकारों का मार्गदर्शन किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ गीतकवि गुलाब सिंह ने कहा- "यह कार्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए कि यहाँ नये-पुराने कवियों, आलोचकों, सम्पादकों, संगीतज्ञों, चित्रकारों, विचारकों ने खुले मन से गीत पर बात की और गीतों को अपने-अपने ढँग से प्रस्तुत किया है। पूर्णिमा और उनकी टीम को हार्दिक बधाई।"

तदुपरांत नवगीत से सरोकार रखने वाली पाँच महत्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। 'हौंसलों के पंख' शीर्षक से कल्पना रमानी के नवगीत संग्रह, समकालीन छंद प्रसंग शीर्षक से डॉ भारतेन्दु मिश्र के लेखों का संग्रह,  लकीरों के आर-पार शीर्षक से गीता पंडित के गीत-नवगीत संग्रह, नवगीत २०१३ शीर्षक से नवगीत की पाठशाला से संकलित नवगीतों का संग्रह (संपादक द्वय- डा. जगदीश व्योम एवं पूर्णिमा वर्मन) तथा बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता शीर्षक से अवनीश सिंह चौहान द्वारा संपादित लेख संग्रह का लोकार्पण किया गया। 

इनके विषय में क्रमशः श्री सौरभ पांडेय, भारतेन्दु मिश्र, डॉ. जगदीश व्योम, पूर्णिमा वर्मन तथा अवनीश सिंह चौहान ने अपने विचार प्रकट किये। इस अवसर पर अंजुमन प्रकाशन के वीनस केसरी भी उपस्थित थे।

तीसरे सत्र में नई पीढ़ी के रचनाकारों का कविता पाठ रखा गया था। इसमें मुंबई से पधारे पत्रकार एवं नवगीतकार ओमप्रकाश तिवारी, इलाहाबाद से पधारे जयकृष्ण राय तुषार, इटावा से पधारे अवनीश सिंह चौहान, छिंदवाड़ा से पधारे रोहित रूसिया और प्रतापगढ़ से पधारे रविशंकर मिश्र ने अपने नवगीत प्रस्तुत किये।
 
दूसरे दिन नवगीत के अकादमिक सत्र में छह शोधपत्र पढ़े गए। 'नवगीतों में भारतीय संस्कृति' विषय पर गुलाब सिंह, 'समकालीन नवगीतों में संवेदना का विकास' विषय पर नचिकेता, 'गीत की शाश्वतता और युवा रचनाकार' विषय पर निर्मल शुक्ल, 'गीत स्वीकृति- रचना प्रक्रिया के नये तेवर' शीर्षक से वीरेन्द्र आस्तिक, 'नवगीतों में नारी विमर्श' शीर्षक पर डॉ. ओमप्रकाश सिंह एवं 'वेब पर नवगीत की उपस्थिति' विषय पर डॉ. जगदीश व्योम ने अपने विचार रखे। प्रस्तुत शोधलेखों पर चर्चा-परिचर्चा में सभी ने प्रबुद्ध सहभागिता की। अपने वक्तव्य में नचिकेता जी ने कहा- 'आधुनिकतावादी-अस्तित्ववादी जीवन दृष्टि के प्रभाव एवं प्रवाह में लिखे गए गीत नवगीत हैं। गीत की व्यक्तिनिष्ठता नवगीत में यथार्थ दृष्टि में बदल गयी है, जिससे गीत की संवेदना का पाट अत्यधिक विस्तृत हो गया है।'

 
निर्मल शुक्ल जी ने कहा- 'गीत-काव्य अपने उद्भव से अधुनातन तक की यात्रा करते हुए आज जिस परिष्कृत रूप में हम तक पहुँचा है वही आज संवेदनशील आधुनिक गीत के स्वरुप का नया संस्करण है।' वीरेंद्र आस्तिक जी ने बताया कि 'दरअसल गीत समय का दस्तावेज बनने की जद्दोजहद में प्रयोगधर्मी हो गया है। वास्तव में गीत का प्रयोगधर्मी होना ही नवीन होना है।' डॉ ओमप्रकाश सिंह जी ने कहा- 'सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक बदलाव के साथ नवगीत भी बदलता है। इस बदलाव के रंग नवगीत में- (नारी विमर्श) में भी देखे जा सकते हैं।' डॉ जगदीश व्योम जी का मानना था कि- 'नवगीतों को विश्व स्तर पर पहुँचाने में इंटरनेट का बड़ा योगदान है। वर्त्तमान में वेब की उपलब्धता नवगीत के लिए बड़ी उपलब्धि है।'


पाँचवें सत्र में महिला नवगीतकारों ने काव्यपाठ किया जिसमें राँची, झारखंड से पधारी यशोधरा राठौर, कानपुर उत्तर प्रदेश से पधारी मधु प्रधान, मुंबई, महाराष्ट्र से पधारी कल्पना रामानी, कोरबा छत्तीसगढ़ से पधारी सीमा अग्रवाल और दिल्ली से पधारी गीता पंडित ने अपने नवगीत प्रस्तुत किये। यशोधरा राठौर नवगीत की जानीमानी हस्ताक्षर है जबकि मधु प्रधान गीत की वरिष्ठ पीढ़ी से संबंध रखती हैं। कल्पना रामानी, सीमा अग्रवाल और गीता पंडित नवगीत के क्षेत्र में अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा संचालित नवगीत की पाठशाला से नवगीत के क्षेत्र में आई हैं। इन सभी रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से उपस्थित रचनाकारों एवे वरिष्ठ अतिथियों को प्रभावित किया।
 
अतिथि कवियों में चन्द्रभाल सुकुमार, बल्ली सिंह चीमा, सुरेश उजाला एवं डॉ सुभाष राय की उपस्थिति सराहनीय रही। इन कवियों ने काव्यपाठ भी किया। छठे सत्र में स्थानीय एवं अन्य रचनाकारों का कवितापाठ हुआ। नचिकेता, निर्मल शुक्ल, पूर्णिमा वर्मन, वीरेन्द्र आस्तिक, डा. ओमप्रकाश सिंह, सौरभ पाण्डेय, शैलेन्द्र शर्मा, अनिल वर्मा, रामशंकर वर्मा, मनोज शुक्ल, श्याम श्रीवास्तव, शरत सक्सेना, आदि ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया। इस सत्र की एक उपलब्धि यह भी रही कि उपस्थित रचनाकारों को यज्ञदत्त पण्डित जी से रेडियो की दुनिया के संस्मरण सुनने का अवसर मिला। इस सत्र का संचालन प्रबुद्ध गीतकार धनंजय सिंह ने किया।

शाम को आयोजित सांस्कृतिक संध्या में विजेन्द्र विज, शंभु कुमार झा एवं मनु गौतम द्वारा नवगीतों पर निर्मित नवगीत-फिल्मों को दिखाया गया जिसे भरपूर सराहना मिली। ये फिल्में कुमार रवीन्द्र, नचिकेता, कृष्णानंद कृष्ण, मनु गौतम और पूर्णिमा वर्मन के नवगीतों पर आधारित थीं। नाट्य प्रस्तुति में अनेक रचनाकारों के नवगीतों पर आधारित, पूर्णिमा वर्मन द्वारा रचित नुक्कड़ नाटक ‘कंगाली में आटा गीला’ नितिन जैन के निर्देशन एवं रामशंकर वर्मा द्वारा सह निर्देशन में प्रस्तुत किया गया। भाग लेने वाले कलाकार थे- सुनील कुमार, हैप्पी, गगन मिश्रा, रामशंकर वर्मा-1, रामशंकर वर्मा-2 इंद्रजीत श्रीवास्तव और गौरीशंकर।

संगीत के कार्यक्रम में नवगीतों की संगीतमय प्रस्तुति सम्राट एवं राजकुमार और उनके साथियों ने की, जबकि संयोजन रश्मि एवं आशीष का रहा। कार्यक्रम की सज्जा और उसका संचालन रोहित रूसिया ने किया। विजेन्द्र विज एवं श्रीकान्त मिश्र नें मल्टीमीडिया विशेषज्ञ की भूमिका का निर्वहन किया। विशेष सहयोग श्री प्रवीण सक्सेना और आदित्यकुमार वर्मन का रहा। आभार अभिव्यक्ति पूर्णिमा वर्मन ने की। इस सारे कार्यक्रम का भारत में संयोजन का डॉ. जगदीश व्योम और डॉ अवनीश सिंह चौहान करते हैं।

7 टिप्‍पणियां:

कल्पना रामानी ने कहा…

अविस्मरणीय मधुर यादें समेटे हुए उन अनमोल पलों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। पूर्णिमा जी की तपस्या अनुकरणीय है। उनको बार बार नमन।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

VISTRIT REPORT PADH KAR AANANDAANUBHOOTI HUI.

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रिपोर्ट, एक अदभुत आयोजन की! इस कार्यक्रम ने बहुत कुछ सिखाया!

बेनामी ने कहा…

BAHUT SUNDAR.

Saurabh ने कहा…

एक अविमरणीय आयोजन !
जानने-समझने को बहुत कुछ मिला.. .

neerja shah ने कहा…

bahut sundr report ,badhai purnima ji.pranava bharti.

Pawan Bharti Chauhan ने कहा…

अति सुंदर