1 दिसंबर 2012

अभिव्यक्ति - २०१२ नवगीत परिसंवाद का सफल आयोजन


 
लखनऊ दिनांक १७-१८ नवम्बर, वर्ष २०१२, पिछले साल की तरह इस साल भी अभिव्यक्ति विश्वम के तत्वावधान में जाल पत्रिकाओं अभिव्यक्ति एवं अनुभूति द्वारा नवगीत के विभिन्न आयामों पड़ताल करने वाले कार्यक्रम 'नवगीत परिसंवाद एवं विमर्श' का सफल आयोजन किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ नवगीतकारों सहित नवगीत से जुड़े अनेक उदीयमान रचनाकारों ने भाग लिया। हरियाणा से कुमार रवींद्र, बिहार से नचिकेता, भोपाल से दिवाकर वर्मा, कानपुर से वीरेंद्र आस्तिक, दिल्ली से जगदीश व्योम, मुरादाबाद से अवनीश सिंह चौहान, डाक्टर महेश दिवाकर, शचीन्द्र भटनागर, छत्तीसगढ़ से सीमा अग्रवाल, महाराष्ट्र से ओमप्रकाश तिवारी, मध्यप्रदेश से रोहित रूसिया, नितिन जैन, कानपुर से शैलेन्द्र शर्मा, प्रतापगढ़ से रविशंकर मिश्र, लखनऊ से निर्मल शुक्ल, पारसनाथ गोवर्धन, मधुकर अष्ठाना, श्याम श्रीवास्तव, डॉ. रामकठिन सिंह, अमिता दुबे, अनिल वर्मा, संध्या सिंह, आभा खरे, रामशंकर वर्मा आदि के अतिरिक्त दूसरे दिवस की नवगीत काव्य संध्या में अनेक प्रतिष्ठित नवगीतकार, कलाकार, नाटककार और संगीतकार उपस्थित थे।

 
१७ नवंबर की सुबह अल्पाहर के साथ नवगीत पर आधारित एक पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया, जब कि सभाकक्ष में पिछले साल के कार्यक्रम पर आधारित एक पावर पाइंट प्रस्तुति जारी थी जिसमें पिछले साल के चित्र प्रदर्शित किये गए थे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार हिसार हरियाणा से पधारे नवगीतकार कुमार रवीन्द्र तथा रिट्ज समूह के चेयरमैन श्री वाई के खन्ना की पत्नी श्रीमती निशा खन्ना के करकमलों द्वारा करतल ध्वनि के बीच मंगलदीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का पुनीत प्रारंभ हुआ। सत्र के अध्यक्ष थे नवगीतकार कुमार रवीन्द्र तथा मुख्य अतिथि थीं श्रीमती निशा खन्ना।


पहला सत्र नवगीत की कार्यशाला का था। इसके सूत्रधार थे दिल्ली से पधारे डॉ. राजेन्द्र गौतम। अपने वक्तव्य में उन्होने हिंदी कविता में नवगीत के प्रादुर्भाव, कलेवर, वैशिष्ट्य, प्रासंगिकता, लोक सम्प्रक्तता, विभिन्न कालखंडों में इसके विकास पर सारगर्भित, प्रमाणिक विशद विवेचन प्रस्तुत किया। उन्होंने नये नवगीतकारों का मार्गदर्शन किया कि जो भी लिखें वह तार्किक, वैज्ञानिक और युग सापेक्ष द्रष्टिकोण पर आधारित हो। जो भी लिखें वह लोक सम्प्रक्त हो, उदहारण देते हुए उन्होंने बताया कि यह लोक सम्प्रक्ति देश में और विदेश में अलग अलग स्वरुप की हो सकती है। नवगीत में छंद, सामसामयिक सरोकार, लय और विचार के सामंजस्य को लेकर उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बिंदु सबके सामने रखे। इस सत्र में- संध्या सिंह, कल्पना रामामी, सीमा अग्रवाल, रोहित रुसिया, रामशंकर वर्मा, श्रीकान्त मिश्र कान्त और रविशंकर मिश्र ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं। इन रचनाओं पर नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर कुमार रवींद्र, नचिकेता, डाक्टर राजेंद्र गौतम आदि ने अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियाँ दीं।
 
भोजन अंतराल के बाद का सत्र नई पुस्तकों पर चर्चा का था। इस अवसर पर अवनीश सिंह चौहान के नवगीत संग्रह टुकड़ा कागज का, मधुकर अष्ठाना के नवगीत संग्रह कुछ तो करिये तथा वीरेन्द्र आस्तिक के हाल ही में आए नवगीत संग्रह दिन क्या बुरे थे तथा निर्मल शुक्ल द्वारा संपादित, पिछले नवगीत परिसंवाद में पढ़े गए शोधपत्रों के संकलन 'नवगीत एक परिसंवाद' का विमोचन व इन पर चर्चा हुई। तीनो नवगीतकारों ने अपनी नवगीत यात्रा के विषय में विस्तार से बात की। अवनीश सिंह चौहान के नवगीत संग्रह टुकड़ा कागज का पर शचीन्द्र भटनागर, मधुकर अष्ठाना के नवगीत संग्रह कुछ तो करिये पर पारसनाथ गोवर्धन तथा वीरेन्द्र आस्तिक के नवगीत संग्रह दिन क्या बुरे थे पर समीक्षात्मक टिप्पणी दिवाकर वर्मा जी ने की।
 
 
चाय के बात तीसरा सत्र सांस्कृतिक कार्यक्रम का था जिसमें नितिन जैन के निर्देशन में नवगीतों पर आधारित एक नुक्कड़ नाटक खेला गया। इसका आलेख तैयार किया था पूर्णिमा वर्मन ने, निर्देशन और प्रस्तुति नितिन जैन की थी। 'कंगाली में आटा गीला' शीर्षक से यह नाटक अजय पाठक, राम सेंगर, जय चक्रवर्ती, माहेश्वर तिवारी, पूर्णिमा वर्मन, डॉ. जगदीश व्योम और निर्मल शुक्ल के नवगीतों पर आधारित था। नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार थे रामशंकर वर्मा, अंशुमान कुशवाहा, राजेश कुमार, संदीप कुमार, सुनील कुमार, अजित कुमार और अभय तिवारी। उपस्थित नवगीतकारों ने इसे अपनी तरह का एक अनूठा प्रयोग बताया। नवगीतों पर आधारित संगीत कार्यक्रम सम्राट आनंद की टीम ने प्रस्तुत किया। अंत में नवगीत पर आधारित फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। ये फिल्में नचिकेता, कृष्णानंद कृष्ण, डॉ. जगदीश व्योम और पूर्णिमा वर्मन के नवगीतों पर आधारित थीं। फिल्मों का निर्माण किया था- विजेन्द्र विज, शंभु कुमार झा, प्रत्यूष यादव और प्रेक्षा अग्रवाल ने। इसके अतिरिक्त दूरदर्शन द्वारा निर्मित हिन्दी सेवी सम्मान २०१२ फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया। रात्रि भोज के बाद पहले दिन के कार्यक्रम पूरे हो गए।

दूसरे दिन प्रातः नाश्ते के बाद का पहला सत्र नवगीत की अस्मिता के विषय में था। इस सत्र के प्रमुख वक्ता हिसार से पधारे डॉ. कुमार रवीन्द्र थे। उन्होंने विशेष रूप से अपनी बात को इस विषय पर केन्द्रित किया कि कविता में नवगीत की लोकप्रियता कितनी है और सामान्य कविता की तुलना वह कहाँ पर है। इसके विकास के लिये क्या कुछ किया जाना है और क्या कुछ पहले ही किया जा चुका है विशेष रूप से दस्तावेजीकरण के संबंध में। इस सत्र में प्रकाशक के रूप में शचीन्द्र भटनागर और निर्मल शुक्ल ने अपने विचार सबके समक्ष रखे। प्राध्यापक महेश दिवाकर ने नवगीत के क्षेत्र में हुए शोधकार्यों के विषय में बताया और इस बात की चर्चा भी की कि नवगीत से संबंधित शोधकार्यों में किन किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। अवनीश सिंह चौहान तथा श्रीकांत मिश्र ने मल्टी मीडिया में नवगीत की संभावनाओं पर बात की, निर्मल वर्मा ने नवगीत की प्रमुख पत्रिकाओं के विषय में बताया, नितिन जैन ने नवगीत और नाटक के विषय में कुछ शब्द कहे तथा रोहित रुसिया ने नवगीत और चित्रकला के विषय में अपने विचार रखे।
 
भोजन के बाद दूसरा सत्र विभिन्न प्रदेशों में नवगीत के विकास के विषय में था। मुंबई से पधारे वरिष्ठ पत्रकार और नवगीतकार ओमप्रकाश तिवारी ने मुंबई के नवगीतकारों पर अपना शोधपत्र पढ़ा। भोपाल से पधारे वरिष्ठ नवगीतकार दिवाकर वर्मा ने मध्य प्रदेश में नवगीत का उद्भव और विकास के विषय में अपना शोधपत्र पढ़ा, पटना से पधारे नवगीत के वरिष्ठ समीक्षक एवं नवगीतकार नचिकेता ने अपना शोधपत्र बिहार में नवगीत का उद्भव एवं विकास के विषय में पढ़ा, लखनऊ के वरिष्ठ रचनाकार मधुकर अष्ठाना का शोधपत्र उत्तर प्रदेश में नवगीत का उद्भव एवं विकास के विषय में था। अंत में डॉ रमेश मयंक का शोधपत्र राजस्थान में गीत यात्रा उनकी अनुपस्थिति में पढ़ा गया। यह एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक सत्र था जिसके सभी शोधपत्र बाद में वेब पत्रिका अभिव्यक्ति के रचना प्रसंग स्तंभ में संकलित कर प्रकाशित कर दिये गए। प्रत्येक वक्ता के पास २५ मिनट का समय था तथा इसके बाद ५ मिनट का समय प्रश्नोत्तर के लिये रखा गया था। कुछ वैचारिक प्रश्न उभर कर आए और उनके उत्तर दिये गए।
 
चाय के बाद का तीसरा और अंतिम सत्र काव्य संध्या को समर्पित था। प्रारंभ से अंत तक नवगीतकारों ने अपनी विविधतापूर्ण शैली में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन नवगीतों में लोकचेतना, संस्कृति, समकालीन सरोकार, हताशा, आम जन की पीड़ा, प्रेम प्रकृति सभी कुछ मुखरित हुआ। इस अवसर पर आकाशवाणी के वरिष्ठ अधिकारी (सेवानिवृत्त) यज्ञदत्त पंडित ने महादेवी वर्मा के साथ अपने रेडियो साक्षात्कार के कुछ रोचक संस्मरण साझा किये। डॉ. राजेन्द्र परदेसी, डॉ. कुमार रवीन्द्र, डॉ. राजेन्द्र गौतम, दिवाकर वर्मा, नचिकेता, डॉ. महेश दिवाकर, डॉ. शचीन्द्र भटनागर, डॉ. अवनीश सिंह चौहान, रोहित रुसिया, नितिन जैन, डॉ. जगदीश व्योम, श्याम श्रीवास्तव, मधुकर अष्ठाना, निर्मल शुक्ल, राजेन्द्र शुक्ल, ओमप्रकाश तिवारी, डॉ. रामकठिन सिंह, अमिताभ दीक्षित, संध्या सिंह, श्रीकांत मिश्र कांत, अमिता दुबे, कल्पना रामानी, सीमा अग्रवाल और पूर्णिमा वर्मन ने अपनी रचाओं का पाठ किया।
 
अभिव्यक्ति विश्वम की ओर से पूर्णिमा वर्मन ने उपस्थित रचनाकारों को स्मृति चिह्न अभिव्यक्ति पदक से अलंकृत किया और इसके साथ जुड़ी एक रोचक जानकारी को साझा किया। अभिव्यक्ति का आरंभ सुशा फान्ट में हुआ था जिसका निर्माण भारतीय रेल सेवा के अधिकारी हर्ष कुमार ने किया था। अब जबकि अभिव्यक्ति में यूनिकोड फांट का प्रयोग होता है श्री हर्षकुमार के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिये इस पदक पर सुशा फान्ट के अ अक्षर को स्थान दिया गया है। अभिव्यक्ति एवं अनुभूति के फेवीकॉन में भी सुशा के अ का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद सभी रचनाकार और उपस्थित सदस्यों का सामूहिक फोटो लिया गया और फिर सबने मिलकर रात्रि भोज का आनंद उठाया।

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